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Geography: भारत और विश्व का भूगोल(Geography of India and the World)

Geography: भारत और विश्व का भूगोल(Geography of India and the World)
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भूगोल से सबंधित नोट्स

विश्व का भूगोल


ज्वार-भाटा क्या है और कैसे उत्पन्न होता है? (What is tide and how does it occur?)


ज्वार-भाटा (tide) वे तरंग हैं…In fact वे सागरीय तरंगे हैं, जो पृथ्वी, चाँद और सूर्य के आपस के आकर्षण से उत्पन्न होते हैं. जब समुद्री जल ऊपर आती है तो उसे “ज्वार” और जब नीचे आती है तो “भाटा” कहते हैं. चंद्रमा के आकर्षण शक्ति का पृथ्वी के सागरीय जल पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है.
ज्वार-भाटा चंद्रमा और सूर्य के पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा खिंचाव के कारण उत्पन्न होता है.(Jupiter and reflux are caused by the movement of the Moon and the Sun by the force of gravity on the earth.)

ज्वार भाटा से सम्बंधित रोचक तथ्य

  1. चंद्रमा सूर्य से 2.6 लाख गुना छोटा है लेकिन सूर्य की तुलना में 380 गुना पृथ्वी के अधिक समीप है. फलतः चंद्रमा की ज्वार उत्पादन की क्षमता सूर्य की तुलना में 2.17 गुना अधिक है.
  2. पृथ्वी का जो सतह है, surface है…वह अपने केंद्र की तुलना में चंद्रमा से लगभग 6400 km. निकट है. अतः पृथ्वी के उस भाग में जो चाँद के सामने होता है, आकर्षण अधिकतम होता है और ठीक उसके दूसरी ओर न्यूनतम.
  3. इस आकर्षण के प्रभाव के कारण चंद्रमा के सामने स्थित जलमंडल का जल ऊपर उठ जाता है, जिसके फलस्वरूप वहाँ ज्वार आता है.
  4. दो ज्वार वाले स्थानों के बीच का जल ज्वार की ओर खिंच जाने के कारण बीच में समुद्र का तल सामान्य से नीचे चले जाता है, जिससे वहाँ  भाटा उत्पन्न होता है.
एक दिन में प्रत्येक स्थान पर सामान्यतः दो बार ज्वार एवं दो बार भाटा पृथ्वी की घूर्णन के कारण आता है

ज्वार-भाटा के प्रकार

दीर्घ अथवा उच्च ज्वार (Spring Tide)

अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों में एक सीध में होते होते हैं. इन तिथियों में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के संयुक्त प्रभाव के कारण ज्वार की ऊँचाई सामान्य ज्वार से 20% अधिक होती है. इसे वृहद् ज्वार या उच्च ज्वार कहते हैं.

लघु या निम्न ज्वार (Neap Tide)

शुक्ल या कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं. इस कारण सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्वी के जल को भिन्न दिशाओं में आकर्षित करते हैं. फलतः इस समय उत्पन्न ज्वार औसत से 20% कम ऊँचे होते हैं. इसे लघु या निम्न ज्वार कहते हैं.

दैनिक ज्वार (Diurnal Tide)

स्थान पर दिन में केवल एक बार ज्वार-भाटा आता है, तो उसे दैनिक ज्वार-भाटा कहते हैं. दैनिक ज्वार 24 घंटे 52 मिनट के बाद आते हैं. मैक्सिको की खाड़ी और फिलीपाइन द्वीप समूह में दैनिक ज्वार आते हैं.

अर्द्ध-दैनिक ज्वार (Semi-Diurnal)

जब किसी स्थान पर दिन में दो बार (12 घंटे 26 मिनट में) ज्वार-भाटा आता है, तो इसे अर्द्ध-दैनिक ज्वार कहते हैं. ताहिती द्वीप और ब्रिटिश द्वीप समूह में अर्द्ध-दैनिक ज्वार आते हैं.

मिश्रित ज्वार (Mixed Tide)

जब समुद्र में दैनिक और अर्द्ध दैनिक दोनों प्रकार के ज्वार-भाटा का अनुभव लेता है, तो उसे मिश्रित ज्वार-भाटा कहते हैं.

अयनवृत्तीय और विषुवत रेखीय ज्वार

चंद्रमा के झुकाव के कारण जब इसकी किरणें कर्क या मकर रेखा पर सीधी पड़ती हैं, जो उस समय आने-वाले ज्वार को अयनवृत्तीय कहते हैं. इस अवस्था में ज्वार और भाटे की ऊँचाई में असमानता होती है. जब चाँद की किरणें विषुवत रेखा पर लम्बवत पड़ती है तो उस समय जवार-भाटे की स्थिति में असमानता आ जाती है. ऐसी अवस्था में आने वाले ज्वार को विषुवत रेखीय ज्वार कहते हैं.

भौतिक भूगोल : महत्त्वपूर्ण शब्दावली और तथ्य – Geography Glossary


भूगोल से सम्बंधित शब्दावली

उपसौर और अपसौर

पृथ्वी की परिक्रमा की दिशा पश्चिम से पूर्व है, जिस कक्षा में सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करती है, वह दीर्घवृत्तीय है. अतः 3 जनवरी को सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी न्यूनतम (9.15 करोड़ मील) हो जाती है, जिसे उपसोर (Perihelion) कहते हैं. इसके विपरीत 4 जुलाई को पृथ्वी की सूर्य से अधिकतम दूरी (9.15 करोड़ मील) होती है, जिसे अपसोर स्थिति (Aphelin) कहते हैं.

एपसाइड रेखा

अपसौरिक एवं उपसौरिक को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा जो सूर्य के केंद्र से होकर गुजरती है, उसे एपसाइड रेखा कहते हैं.

प्रकाश चक्र (Circle of Illumination)

वैसी काल्पनिक रेखा जो पृथ्वी को प्रकाशित और अप्रकाशित भागों में बाँटती है, प्रकाश चक्र कहलाती है.

विषुव (Equinox)

जब सूर्य विषुवत् रेखा पर लम्बवत चमकता है तो दोनों गोलार्धों पर दिन और रात बराबर होता है, जिसे विषुव कहा जाता है. 21 मार्च (वसंत ऋतु) और 23 सितम्बर (शरद ऋतु) को दिन और रात बराबर अवधि के होते हैं.

नक्षत्र दिवस (Sidereal time)

पृथ्वी के 360 डिग्री घूर्णन में लगा समय, जब एक विशेष तारे के समय में पृथ्वी पुनः अपनी स्थिति में वापस आ जाती है, नक्षत्र दिवस कहलाती है.

सौर दिवस (Solar Day)

जब सूर्य को गतिशील मानकर पृथ्वी द्वारा उसके परिक्रमण की गणना दिवसों के रूप में की जाती हैं, तब सौर दिवस ज्ञात होता है. इसकी अवधि पूर्णतः 24 घंटे होती है.

लीप वर्ष (Leap Year)

प्रत्येक सौर वर्ष कैलंडर वर्ष से लगभग 6 घंटे बढ़ जाता है, इसे हर चौथे वर्ष में लीप वर्ष बनाकर समायोजित किया जाता है. लीपवर्ष 366 दिन का होता है, जिसमें फरवरी माह में 28 के स्थान पर 29 दिन होते हैं.

अक्षांश

विषुवत् रेखा के उत्तर या दक्षिण किसी भी स्थान की विषुवत रेखा से कोणीय दूरी को उस ठान का अक्षांश कहते हैं तथा सामान अक्षांशों को मिलने वाली काल्पनिक रेखा को अक्षांश रेखा कहते हैं. अक्षांश रेखाएँ विषुवत रेखा के (0° अक्षांश रेखा) के समानांतर होती हैं. 0-90° उत्तर और दक्षिण तक होती है. 1° अक्षांश के बीच की दूरी लगभग 111 कि.मी. होती है. पृथ्वी के गोलाभ आकृति के कारण यह दूरी विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओरअधिक होती जाती है. पृथ्वी के सतह पर किसी भी बिंदु की स्थिति अक्षांश रेखाओं द्वारा निर्धारित की जाती है. उत्तरी अक्षांश को कर्क रेखा और दक्षिण अक्षांश को मकर रेखा कहते हैं. उत्तरी अक्षांश को कर्क वृत्त (Arctic circle) और दक्षिणी अक्षांश को मकर वृत्त (Antarctic circle) कहते हैं.

कर्क संक्रांति एवं मकर संक्रांति

सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन की सीमा को संक्रांति कहा जाता है. 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत होता है, इसे कर्क संक्रांति कहते हैं. इसी दिन उत्तर गोलार्ध पर सबसे बड़ा दिन होता है.

देशांतर (Longitude)

ग्लोब पर किसी भी स्थान की प्रधान यामोत्तर (0°देशांतर या ग्रीनवीच के पूर्व या पश्चिम) से कोणीय दूरी को उस स्थान को देशांतर कहा जाता है. सामान देशांतर को मिलने वाली काल्पनिक रेखा जो कि ध्रुवों से होकर गुजरती हैं, देशांतर रेखा कहलाती है. यह पूर्व से पश्चिम दिशा में 180° तक होती है. इस प्रकार देशांतर रेखाओं की कुल संख्या 360 है. विषुवतीय रेखा पर दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी 111.32 कि.मी. होती है, जो ध्रुवोंकी ओर घटकर शून्य हो जाती है. समय का निर्धारण देशांतर रेखाओं से ही होता है

ग्रीनविच मीन टाइम (GMT)

इंगलैंड के निकट शून्य देशांतर पर स्थित ग्रीनविच नामक स्थान से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा प्राइम मेरिडीयन या शून्य देशांतर के समय को सभी देश मानक समय मानते हैं. यह ग्रेट ब्रिटेन का मानक समय है, इसी को ग्रीनविच मीन टाइम कहते हैं.

प्रमाणिक समय और स्थानीय समय

पृथ्वी पर किसी स्थान विशेष का सूर्य की स्थिति से निकाला गया समय स्थानीय समय कहलाता है. दूसरी ओर किसी देश के मध्य से गुजरने वाली देशांतर रेखा के अनुसार लिया गया समय उस देश का प्रमाणिक समय कहलाता है.

संघनन (Condensation)

जल के गैसीय अवस्था से तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होने की प्रक्रिया संघनन कही जाती है. यदि हवा का तापमान ओसांक बिंदु से नीचे पहुँच जाए तो संघनन की प्रक्रिया में वायु के आयतन, तापमान, वायुदाब और आद्रता का प्रभाव पड़ता है.
  • यदि संघनन हिमांक (Freezing point) से नीचे होता है तो तुषार, हिम और पक्षाभ मेघ का निर्माण होता है.
  • यदि संघनन हिमांक के ऊपर होता है तो ओस, कुहरा, कुहासा और बादलों का निर्माण होता है.
  • संघनन की क्रिया अधिक ऊँचाई पर होने पर बादलों का निर्माण होता है.

ओस (Dew)

हवा का जलवाष्प जब संघनित होकर छोटी-छोटी बूंदों के रूप में धरातल पर पड़ी वस्तुओं (घास, पत्तियों आदि) पर जमा हो जाता है, तो उसे ओस कहते हैं.

तुषार या पाला (Frost)

जब संघनन की क्रिया हिमांक से नीचे होती है, तो जलवाष्प जलकणों के बदले हिम कणों में परिवर्तित हो जाता है, इसे ही तुषार या पाला कहते हैं.

कुहरा

कुहरा एक प्रकार का बादल है, जब जलवाष्प का संघनन धरातल के बिल्कुल करीब होता है तो कुहरे का निर्माण होता है. कुहरे में कुहासे की तुलना में जल के कण अधिक छोटी और संघन होती है.

कुहासा (Mist)

कुहासा भी एक प्रकार का कुहरा होता है, जिसमें कुहरे की अपेक्षा दृश्यता दूर तक रहती है. इसमें दृश्यता 1 कि.मी. से अधिक पर 2 कि.मी. से कम होती है.

धुंध (Smog)

बड़े शहरों में फैक्टरियों के निकट जब कुहरे में धुएँ के कण मिल जाते हैं तो उसे धुंध कहते हैं. धुंध कुहरे की तुलना में और सघन होता है. इसमें दृश्यता और भी कम होती है.

निरपेक्ष आद्रता (Absolute Humidity)

हवा में प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आद्रता कहते हैं. इसमें ग्राम प्रति घन मीटर में व्यक्त किया जाता है.

विशिष्ट आद्रता (Specific Humidity)

आद्रता को व्यक्त करने का यह आणविक उपयोगी तरीका है. हवा के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आद्रता कहते हैं. इसे ग्राम प्रति किलोग्राम में व्यक्ति किया जाता है.

सापेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity)

किसी निश्चित तापमान पर वायु में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा और उस वायु के जलवाष्प धारण करने की क्षमता के अनुपात को सापेक्षिक आद्रता कहते हैं. इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है.

आर्द्रता क्षमता (Humidity Capacity)

किसी निश्चित तापमान पर हवा के एक निश्चित आयतन में अधिकतम नमी या आर्द्रता धारण करने की क्षमता को उसकी आर्द्रता क्षमता कहते हैं.

संतृप्त वायु (Saturated Air)

जब हवा किसी भी तापमान पर अपनी आर्द्रता सामर्थ्य के बारबार आर्द्रता ग्रहण कर लेती है तो उसे Saturated Air कहते हैं.

गुप्त उष्मा (Latent Heat)

जल को वाष्प या गैस में परिवर्तित करने के लिए उष्मा के रूप में ऊर्जा की आवश्यकता होती है. एक ग्राम बर्फ को जल में परिवर्तित करने के लिए 79 कैलोरी तथा एक ग्राम जल को वाष्पीकरण द्वारा वाष्प में परिवर्तित करने के लिए 607 कैलोरी की आवश्यकता होती है. वाष्प में उष्मा की यह छिपी हुई मात्रा गुप्त उष्मा कहलाती है.

तड़ित झंझा (Thunderstorm)

तड़ित झंझा तीव्र स्थानीय तूफ़ान या झंझावत है जो विशाल और सघन कपासी मेघों से उत्पन्न होता है. इसमें नीचे से ऊपर की ओर पवनें चलती हैं. मेघों का गरजना और बरसना इसकी प्रमुख विशेषता है. ये संवहन का एक विशिष्ट रूप होते हैं.

चन्द्र ग्रहण कैसे होता है? Information about Lunar Eclipse in Hindi


साधारणतः पूर्णिमा की रात को चंद्रमा पूर्णतः गोलाकार दिखाई पड़ना चाहिए, किन्तु कभी-कभी अपवादस्वरूप चंद्रमा के पूर्ण बिम्ब पर धनुष या हँसिया के आकार की काली परछाई दिखाई देने लगती है. कभी-कभी यह छाया चाँद को पूर्ण रूप से ढँक लेती है. पहली स्थिति को चन्द्र अंश ग्रहण या खंड-ग्रहण (partial lunar eclipse) कहते हैं और दूसरी स्थिति को चन्द्र पूर्ण ग्रहण या खग्रास (total lunar eclipse) कहते हैं.

चंद्र ग्रहण कब लगता है?

चंद्रमा सूर्य से प्रकाश प्राप्त करता है. उपग्रह होने के नाते चंद्रमा अपने अंडाकार कक्ष-तल पर पृथ्वी का लगभग एक माह में पूरा चक्कर लगा लेता है. चंद्रमा और पृथ्वी के कक्ष तल एक दूसरे पर 5° का कोण बनाते हुए दो स्थानों पर काटते हैं. इन स्थानों को ग्रंथि कहते हैं. साधारणतः चंद्रमा और पृथ्वी परिक्रमण करते हुए सूर्य की सीधी रेखा में नहीं आते हैं इसलिए पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर नहीं पड़ पाती है. किन्तु पूर्णिमा की रात्रि को परिक्रमण करता हुआ चंद्रमा पृथ्वी के कक्ष (orbit) के समीप पहुँच जाए और पृथ्वी की स्थिति सूर्य और चंद्रमा के बीच ठीक एक सीध में  हो तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है. चंद्रमा की ऐसी स्थिति को चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) कहते हैं. पर सदा ऐसी स्थिति नहीं आ पाती क्योंकि पृथ्वी की छाया चंद्रमा के अगल-बगल होकर निकल जाती है और ग्रहण नहीं लग पाता. चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) लगने की दो अनिवार्य दशाएँ हैं – चंद्रमा पूरा गोल चमकता हो और यह पृथ्वी के orbit के अधिक समीप हो.

Umbra और Penumbra

सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोल है इसलिए पृथ्वी की परछाई दो शंकु बनाती है. परछाई के एक शंकु को प्रच्छाया (Umbra) तथा दूसरे को खंड छाया या उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं. चंद्रमा पर पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) पड़ने से ही ग्रहण लगता है क्योंकि यह छाया सघन होने के कारण पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति के अनुसार कभी चाँद को आंशिक रूप से और कभी पूर्ण रूप से ढँक लेती है. ये स्थितियाँ क्रमशः अंश-ग्रहण तथा पूर्णग्रहण कहलाती हैं. अंश-ग्रहण कुछ ही मिनट तथा पूर्ण ग्रहण कुछ घंटों तक लगता है. चंद्रमा परिक्रमण करते हुए आगे बढ़ जाता है और पृथ्वी की छाया से मुक्त होकर फिर से सूर्य के प्रकाश से प्रतिबिम्बित होने लगता है.


प्रस्तुत चित्र को देखें जिसमें पृथ्वी की उपच्छायाएँ तथा प्रच्छाया दिखाई गई हैं. यदि कोई पृथ्वी की उपच्छाया (Penumbra) में खड़ा होकर चंद्रमा को देखेगा तो उसको चंद्रमा द्वारा प्रच्छाया (Umbra) वाला कटा हुआ भाग दिखाई नहीं देगा तथा उसे आंशिक चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) ही दृष्टिगोचर होगा, किन्तु यदि वह पृथ्वी के प्रच्छाया क्षेत्र में खड़ा होकर चाँद को देखेगा तो उसे प्रच्छाया (Umbra) से पूर्ण रूप से ढँका होने के कारण चाँद पूर्ण ग्रहण के रूप में दिखाई देगा. पृथ्वी की उपच्छाया (Penumbra) का चंद्रमा पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता. ग्रहण लगते समय चंद्रमा हमेशा पश्चिम की ओर से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है इसलिए सबसे पहले इसके पूर्वी भाग में ग्रहण लगता है और यह ग्रहण सरकते हुए पूर्व की ओर से निकल कर बाहर चला जाता है.
चंद्रमा एक स्थान से पश्चिम से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है. सर्वप्रथम इसका पूर्वी भाग प्रच्छाया (Umbra) में जाता है. दूसरे स्थान तक पहुँचने में चन्द्रमा को 1 घंटा 1 मिनट लगता है और तीसरे स्थान तक 2 घंटा 42 मिनट. इस प्रकार प्रच्छाया (Umbra) के केंद्र में पहुँचने के लिए चंद्रमा को लगभग 2 घंटे और मुक्त होने में लगभग 3 घंटे लग जाते हैं. प्रच्छाया (Umbra) से निकल कर चंद्रमा उपच्छाया (Penumbra) में प्रवेश करता है किन्तु इसके प्रकाश में कोई विशेष अंतर नहीं आता.
औसतन प्रति दस वर्षों में 15 चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) घटित होते हैं. एक वर्ष की अवधि में अधिक से अधिक 3 और कम से कम शून्य चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) लगते हैं. चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) के समय चंद्रमा एकदम काला न दिखाई देकर धुंधला लाल या ताम्बे के रंग का दृष्टिगोचर होता है. यह प्रकाश चंद्रमा से प्रतिबिम्बित नहीं होता वरन् सूर्य का होता है. सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के विपरीत भाग के वायुमंडल से परावर्तित होकर प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश हो जाता है जिसके कारण ग्रहण की अवस्था में चंद्रमा धुंधला हल्का लाल दिखाई देता है.



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